shani dev upay follow this remedy to saturn happy in your kundali : शनि देवाला न्यायाची देवता म्हणतात. प्रत्येकाला त्याच्या कर्मानुसार फळ देण्याचे काम शनि देव करतात असे म्हणतात. शनिचा संताप अतिशय उग्र असतो असे सांगतात. जर आपल्या कुंडलीत शनि भारी असेल अर्थात कुंडलीत शनिचा कोप झाला असेल तर आपल्याला त्रास होऊ शकतो. आपल्या कुंडलीला शनि पीडेचा त्रास होत असेल तर शनिला प्रसन्न करण्यासाठी उपाय करणे हिताचे आहे. शनि ढय्या, शनि साडेसाती या त्रासांनी त्रस्त असल्यास शनिवारी शनिला प्रसन्न करण्यासाठी उपाय करणे हिताचे आहे. शनिला प्रसन्न करण्याचे उपाय केले तर शनि पीडेचा त्रास कमी होण्यास मदत होईल.
Chanakya Niti: बायका 'हे; काम करत असतील पुरुष गड्यांनी लगेच दुसरीकडे फिरवावे आपले डोळे
Name Astrology : 'या' नावांच्या मुलांचा मेंदू कॉम्प्युटरपेक्षा वेगाने काम करतो
जय जय श्री शनीदेवा |
पद्मकर शिरी ठेवा आरती ओवाळतो |
मनोभावे करुनी सेवा || धृ ||
सुर्यसुता शनिमूर्ती |
तुझी अगाध कीर्ति एकमुखे काय वर्णू |
शेषा न चले स्फुर्ती || जय || १ ||
नवग्रहांमाजी श्रेष्ठ |
पराक्रम थोर तुझा ज्यावरी कृपा करिसी |
होय रंकाचा राजा || जय || २ ||
विक्रमासारिखा हो |
शककरता पुण्यराशी गर्व धरिता शिक्षा केली |
बहु छळीयेले त्यासी || जय || ३ ||
शंकराच्या वरदाने |
गर्व रावणाने केला साडेसाती येता त्यासी |
समूळ नाशासी नेला || जय || ४ ||
प्रत्यक्ष गुरुनाथ |
चमत्कार दावियेला नेऊनि शुळापाशी |
पुन्हा सन्मान केला || जय || ५ ||
ऐसे गुण किती गाऊ |
धणी न पुरे गातां कृपा करि दिनांवरी |
महाराजा समर्था || जय || ६ ||
दोन्ही कर जोडनियां |
रुक्मालीन सदा पायी प्रसाद हाची मागे |
उदय काळ सौख्यदावी || जय || ७ ||
जय जय श्री शनीदेवा |
पद्मकर शिरी ठेवा आरती ओवाळीतो |
मनोभावे करुनी सेवा ||
ॐ शन्नो देवी रभिष्टय आपो भवन्तु पीपतये शनयो रविस्र वन्तुनः।
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल।
दीनन के दुख दूर करि, कीजै नाथ निहाल॥
जय जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महाराज।
करहु कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज॥
जयति जयति शनिदेव दयाला।
करत सदा भक्तन प्रतिपाला॥
चारि भुजा, तनु श्याम विराजै।
माथे रतन मुकुट छबि छाजै॥
परम विशाल मनोहर भाला।
टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला॥
कुण्डल श्रवण चमाचम चमके।
हिय माल मुक्तन मणि दमके॥
कर में गदा त्रिशूल कुठारा।
पल बिच करैं अरिहिं संहारा॥
पिंगल, कृष्णो, छाया नन्दन।
यम, कोणस्थ, रौद्र, दुखभंजन॥
सौरी, मन्द, शनी, दश नामा।
भानु पुत्र पूजहिं सब कामा॥
जा पर प्रभु प्रसन्न ह्वैं जाहीं।
रंकहुँ राव करैं क्षण माहीं॥
पर्वतहू तृण होई निहारत।
तृणहू को पर्वत करि डारत॥
राज मिलत बन रामहिं दीन्हयो।
कैकेइहुँ की मति हरि लीन्हयो॥
बनहूँ में मृग कपट दिखाई।
मातु जानकी गई चुराई॥
लखनहिं शक्ति विकल करिडारा।
मचिगा दल में हाहाकारा॥
रावण की गति-मति बौराई।
रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई॥
दियो कीट करि कंचन लंका।
बजि बजरंग बीर की डंका॥
नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा।
चित्र मयूर निगलि गै हारा॥
हार नौलखा लाग्यो चोरी।
हाथ पैर डरवायो तोरी॥
भारी दशा निकृष्ट दिखायो।
तेलिहिं घर कोल्हू चलवायो॥
विनय राग दीपक महं कीन्हयों।
तब प्रसन्न प्रभु ह्वै सुख दीन्हयों॥
हरिश्चन्द्र नृप नारि बिकानी।
आपहुं भरे डोम घर पानी॥
तैसे नल पर दशा सिरानी।
भूंजी-मीन कूद गई पानी॥
श्री शंकरहिं गह्यो जब जाई।
पारवती को सती कराई॥
तनिक विलोकत ही करि रीसा।
नभ उड़ि गयो गौरिसुत सीसा॥
पाण्डव पर भै दशा तुम्हारी।
बची द्रौपदी होति उघारी॥
कौरव के भी गति मति मारयो।
युद्ध महाभारत करि डारयो॥
रवि कहँ मुख महँ धरि तत्काला।
लेकर कूदि परयो पाताला॥
शेष देव-लखि विनती लाई।
रवि को मुख ते दियो छुड़ाई॥
वाहन प्रभु के सात सुजाना।
जग दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना॥
जम्बुक सिंह आदि नख धारी।
सो फल ज्योतिष कहत पुकारी॥
गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं।
हय ते सुख सम्पति उपजावैं॥
गर्दभ हानि करै बहु काजा।
सिंह सिद्धकर राज समाजा॥
जम्बुक बुद्धि नष्ट कर डारै।
मृग दे कष्ट प्राण संहारै॥
जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी।
चोरी आदि होय डर भारी॥
तैसहि चारि चरण यह नामा।
स्वर्ण लौह चाँदी अरु तामा॥
लौह चरण पर जब प्रभु आवैं।
धन जन सम्पत्ति नष्ट करावैं॥
समता ताम्र रजत शुभकारी।
स्वर्ण सर्व सर्व सुख मंगल भारी॥
जो यह शनि चरित्र नित गावै।
कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै॥
अद्भुत नाथ दिखावैं लीला।
करैं शत्रु के नशि बलि ढीला॥
जो पण्डित सुयोग्य बुलवाई।
विधिवत शनि ग्रह शांति कराई॥
पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत।
दीप दान दै बहु सुख पावत॥
कहत राम सुन्दर प्रभु दासा।
शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा॥
पाठ शनिश्चर देव को, की हों 'भक्त' तैयार।
करत पाठ चालीस दिन, हो भवसागर पार॥